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जम्बूदीप

प्राचीन भारतीय ग्रन्थों में प्रायः बृहत्तर भारत की धरती को जम्बूद्वीप नाम से अभिहित किया गया है। वस्तुतः जम्बूद्वीप का अधिकांश भाग वर्तमान एशिया माना जाता है। प्राचीन भारतीय ब्रह्माण्डशास्त्र में 'द्वीप' का अर्थ वर्तमान समय के द्वीप या महाद्वीप (continent) जैसा है। इस समय बचे हुए प्रमाणों के आधार पर ऐसा लगता है कि सबसे पहले सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दी ईसापूर्व में अपने राज्यक्षेत्र को 'जम्बूद्वीप' कहा है। पश्चातवर्ती ग्रन्थों में यही शब्दावली देखने को मिलती है। उदाहरण के लिये, १०वीं शताब्दी के एक कन्नड शिलालेख में भी भारत को 'जम्बूद्वीप' कहा गया है।

- Shersingh Sisodiya

11/22/20241 min read

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"जम्बूदीप" (Jambudweep) एक प्राचीन भारतीय अवधारणा है, जो मुख्य रूप से हिंदू, बौद्ध और जैन धर्मग्रंथों में उल्लेखित है। यह एक पौराणिक भू-क्षेत्र है और इसे पुराणों, जैन ग्रंथों और बौद्ध साहित्य में विस्तार से वर्णित किया गया है। इसका उल्लेख एक भौगोलिक, सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टिकोण से किया गया है।

जम्बूदीप का धार्मिक और पौराणिक संदर्भ

  1. नाम का अर्थ:

    • "जम्बू" का अर्थ है जामुन का पेड़, और "दीप" का अर्थ है द्वीप या भूमि। जैन और हिंदू साहित्य में इसे "जम्बू" नामक एक विशाल पेड़ से जोड़ा जाता है, जो इस भूमि के केंद्र में स्थित माना जाता है।

  2. भौगोलिक स्थिति:

    • पुराणों और ग्रंथों के अनुसार, जम्बूदीप पृथ्वी के सात द्वीपों (सप्तद्वीपों) में से एक है। इसे पृथ्वी का मध्य या केंद्र माना गया है।

    • यह हिमालय पर्वत से लेकर समुद्र तक फैला हुआ बताया गया है। भारतवर्ष, जिसे वर्तमान भारत का पुराना नाम माना जाता है, इसे जम्बूदीप का हिस्सा बताया गया है।

  3. जैन धर्म में जम्बूदीप:

    • जैन धर्म में जम्बूदीप का वर्णन विशेष रूप से किया गया है। इसे पूरे ब्रह्मांड का एक मुख्य भाग बताया गया है।

    • इसमें मान्यता है कि यह 2,00,000 योजन (लगभग 15 लाख किलोमीटर) चौड़ा है और इसके केंद्र में सुमेरु पर्वत स्थित है।

    • जम्बूदीप को कई खंडों में विभाजित किया गया है, जिनमें भारतवर्ष एक महत्वपूर्ण खंड है।

  4. बौद्ध धर्म में जम्बूदीप:

    • बौद्ध साहित्य में जम्बूदीप को मानवों की रहने की भूमि के रूप में दर्शाया गया है। इसे चार प्रमुख महाद्वीपों में से एक माना गया है।

    • इस महाद्वीप का आकार त्रिकोणीय बताया गया है, और इसे बोधिसत्व के कार्यस्थल के रूप में भी देखा गया है।

  5. हिंदू धर्म में जम्बूदीप:

    • पुराणों के अनुसार, जम्बूदीप पृथ्वी के केंद्र में स्थित है और इसे ब्रह्मांड के सात लोकों में प्रमुख स्थान दिया गया है।

    • विष्णु पुराण, भगवद पुराण, और अन्य पुराणों में इसकी महिमा का वर्णन किया गया है।

जम्बूदीप का सांस्कृतिक महत्व

  • जम्बूदीप की अवधारणा केवल भौगोलिक नहीं है; इसे एक प्रतीकात्मक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखा जाता है।

  • इसे मानव सभ्यता, ज्ञान और धर्म का केंद्र माना गया है।

आधुनिक दृष्टिकोण

  • आधुनिक विज्ञान के संदर्भ में जम्बूदीप की अवधारणा को पौराणिक और प्रतीकात्मक माना जाता है। कुछ विद्वानों ने इसे दक्षिण एशिया, विशेष रूप से भारतीय उपमहाद्वीप का प्रतीक माना है।

जम्बूदीप का उल्लेख जैन धर्म, हिंदू धर्म, और बौद्ध धर्म के ग्रंथों में मिलता है। यह प्राचीन भारतीय परंपराओं और मान्यताओं में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इसके बारे में प्रमुख बातें इस प्रकार हैं:

1. जैन धर्म में जम्बूदीप

जम्बूदीप को जैन धर्म में भौगोलिक दृष्टि से मध्यलोक (तीन लोकों में से एक) का सबसे महत्वपूर्ण द्वीप माना गया है।

  • विवरण:
    जम्बूदीप को गोलाकार रूप में दर्शाया गया है और इसे अन्य द्वीपों से बड़ा बताया गया है। इसके केंद्र में सुमेरु पर्वत स्थित है।

  • नाम का अर्थ:
    जम्बूदीप का नाम जम्बू वृक्ष (जामुन) के नाम पर रखा गया है, जो इस क्षेत्र में बहुतायत में पाए जाते हैं।

  • प्रमुख क्षेत्र:
    इसे सात क्षेत्रों में बांटा गया है, और इसके चारों ओर समुद्र और अन्य द्वीप स्थित हैं।

  • महत्व:

    • यह क्षेत्र मोक्ष प्राप्ति के लिए उपयुक्त माना जाता है।

    • 24 तीर्थंकरों ने जम्बूदीप में ही जन्म लिया और मोक्ष प्राप्त किया।

    • जैन धर्म के अनुसार, वर्तमान में यही क्षेत्र जीवन और धर्म के लिए सबसे उपयुक्त है।

2. हिंदू धर्म में जम्बूदीप

हिंदू पुराणों में जम्बूदीप को ब्रह्मांड के सात द्वीपों में से एक माना गया है।

  • ब्रह्मांड की संरचना:

    • जम्बूदीप ब्रह्मांड के केंद्र में स्थित है।

    • इसके चारों ओर लवण (खारे) जल का समुद्र है।

  • सुमेरु पर्वत:

    • इसे जम्बूदीप का केंद्र बिंदु बताया गया है।

    • इसके चारों ओर विभिन्न जनपद और राज्यों का उल्लेख है।

  • भौगोलिक दृष्टिकोण:
    जम्बूदीप को पृथ्वी का प्रतीक माना गया है।

  • नाम का महत्व:
    जम्बू वृक्ष, जो इसके केंद्र में स्थित है, इसका नामकरण करता है।

3. बौद्ध धर्म में जम्बूदीप

बौद्ध धर्म में जम्बूदीप का उल्लेख संसार के चार महाद्वीपों (चतुर्द्वीप) में से एक के रूप में हुआ है।

  • स्थान:
    इसे पृथ्वी के दक्षिणी भाग में स्थित बताया गया है।

  • महत्व:

    • यह बुद्धत्व प्राप्ति के लिए अनुकूल माना जाता है।

    • यहां की भूमि पर ही लोग धर्म का पालन करते हुए निर्वाण प्राप्त कर सकते हैं।

  • अर्थ:
    जम्बूदीप का अर्थ "जम्बू वृक्ष से युक्त भूमि" है।

सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व

  • भौगोलिक दृष्टि:
    कुछ विद्वानों ने इसे भारतीय उपमहाद्वीप से जोड़ा है।

  • आध्यात्मिक महत्व:
    इसे धर्म, ज्ञान, और मोक्ष का केंद्र माना गया है।

जम्बूदीप प्राचीन भारतीय संस्कृति और जैन, बौद्ध, तथा हिंदू ग्रंथों में वर्णित एक भूगोलिक एवं पौराणिक अवधारणा है। यह मानव सभ्यता और पृथ्वी के संरचनात्मक विभाजन का प्रतीक है।

जम्बूदीप का अर्थ और विवरण:

  1. नाम का अर्थ:

    • "जम्बू" का अर्थ है जामुन का पेड़, और "दीप" का अर्थ है द्वीप।

    • ऐसा माना जाता है कि जम्बूदीप का नाम इसके केंद्र में स्थित विशाल जम्बू (जामुन) के वृक्ष से पड़ा है।

  2. स्थिति और संरचना:

    • जैन और हिंदू ग्रंथों में जम्बूदीप को एक गोलाकार द्वीप के रूप में वर्णित किया गया है, जो पृथ्वी के केंद्र में स्थित है।

    • यह सुमेरु पर्वत के चारों ओर फैला हुआ है और इसे सात महासागरों और सात द्वीपों से घिरा हुआ माना गया है।

  3. धार्मिक मान्यता:

    • जैन धर्म में, जम्बूदीप को छह खंडों में विभाजित किया गया है, जिनमें भारत क्षेत्र (Bharat Kshetra) और ऐरावत क्षेत्र (Airavat Kshetra) प्रमुख हैं।

    • इसे मोक्ष प्राप्ति का एक महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है।

    • हिंदू धर्म में इसे मानव सभ्यता का केंद्र कहा गया है।

  4. भौगोलिक दृष्टि:

    • जम्बूदीप को अक्सर आज के दक्षिण एशिया या पूरी पृथ्वी का प्रतीक माना जाता है।

    • यह "चार महाद्वीपों" (द्वीपों) की संरचना का हिस्सा है:

      • जम्बूदीप

      • प्लक्षदीप

      • शाल्मलदीप

      • कुशदीप

जम्बूदीप का जैन धर्म में महत्व:

  1. तीर्थंकरों का स्थान:
    जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों में से सभी ने जम्बूदीप में जन्म लिया। यह स्थान धार्मिक रूप से सर्वोच्च माना जाता है।

  2. पंचमेरु संरचना:
    जैन ग्रंथों में जम्बूदीप को विस्तृत चित्रण के साथ पंचमेरु संरचना में दिखाया गया है।

  3. ध्यान और ज्ञान का केंद्र:
    इसे ध्यान और ज्ञान के लिए सबसे उपयुक्त स्थान माना जाता है, क्योंकि यहाँ धर्म, कर्म, और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है।

आधुनिक दृष्टिकोण:

आधुनिक वैज्ञानिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से, जम्बूदीप को पौराणिक रूपक के रूप में देखा जाता है। यह भूगोल के साथ-साथ मानव जीवन के दार्शनिक और धार्मिक पहलुओं को दर्शाने वाला प्रतीक है।